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Stroke: कारण, लक्षण, सुझाव, और उपचार

Stroke: कारण, लक्षण, सुझाव, और उपचार

वर्ल्ड स्ट्रोक डे पूरी दुनिया में मनाया जाता है. इसे हर साल के 29 अक्टूबर भारत सहित दुनिया के दूसरे हिस्सों में मनाया जाता है. हर साल वर्ल्ड Stroke Day मनाने के पीछे इस हेल्थ प्रॉब्लम से जुड़ी इम्पार्टेन्ट बातों के बारे में आम लोगों को जानकारी देना है. इससे कैसे खुद का बचाव करना है, इसका क्या इलाज है, इसका प्रभाव कम करने के लिए क्या क्या करना है, और स्ट्रोक की पासिबिलिटी को कम कैसे किया जा सकता है, जैसी बातों के बारे में आम लोगों को जानकारी दी जाती है. इस आर्टिकल में हमने स्ट्रोक से जुड़ी कुछ इम्पार्टेन्ट बातों के बारे जानकारी दी है जो इस Stroke (न्यूरोलॉजिकल इमरजेंसी) से खुद का बचाव करने में आपकी मदद करेगी.

स्ट्रोक क्या है?

स्ट्रोक एक जानलेवा हेल्थ इमरजेंसी है. स्ट्रोक की स्थिति तब आती है जब ब्रेन के किसी भाग में खून की कमी हो जाती है. इस खून की कमी सामान्यता तब होती है जब आर्टिलरीज़ ब्लॉक हो जाएं या ब्रेन के किसी हिस्से में ब्लीडिंग हो रही हो. खून की पर्याप्त सप्लाई न होने पर आक्सीजन की कमी से ब्रेन सेल्स डेड होने लगती हैं. Stroke होने पर तुरन्त हेल्थ इमरजेंसी सर्विस से सम्पर्क करना चाहिए.  

हमने वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाना कब से शुरू किया?  

स्ट्रोक पूरी दुनिया में एक जानलेवा बीमारी के रूप में मौजूद है. पूरी दुनिया में हो रही फिज़िकल डिसेबिलिटी और मौतों के लिए स्ट्रोक को जिम्मेदार माना जाता है. वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गनाइज़ेशन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 12,224,551 स्ट्रोक के नए मामले रिकार्ड किए जाते हैं. 25 साल की उम्र से ऊपर हर चार मे से एक आदमी अपने जीवन में स्ट्रोक का सामना करना पड़ेगा. दुनिया में 101 मिलियन से ज्यादा ऐसे लोग है जो stroke से पीड़ित रहे हैं. हर साल लगभग साढ़े छह मिलियन मौते स्ट्रोक से होती हैं. 

इस बीमारी के बचाव करने के लिए एवेयरनेस फैलाने का आइडिया 1990 में अस्तित्व में आया. यूरोपियन स्ट्रोक इनिशिएटिव ने इस बीमारी से लड़ने के लिए वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाने का फैसला किया. फाइनेन्सियल लिमिटेशन के कारण ये आईडिया यूरोप तक सीमित रहा. यूरोपियन स्ट्रोक आर्गनाइज़ेशन ने हर मई की 10 तारीख को वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाना ज़ारी रखा. हर साल अक्टूबर 29 को वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाने का फैसला वैंकोवर, कनाडा की वर्ल्ड स्ट्रोक कांग्रेस में 2004 में लिया गया. इसके बाद, 2006 से पूरी दुनिया में हर साल अक्टूबर 29 को World Stroke Day मनाया जाने लगा. 

  
स्ट्रोक कितने तरह का होता है?

कारणों, लक्षणों और प्रभावों के आधार पर स्ट्रोक को दो अलग अलग इस्केमिक और हैमरेजिक स्ट्रोक कैटेगरीज़ में ऱखा जाता है. दोनों तरह के स्ट्रोक में काफी अन्तर हैं. इनके बीच अन्तर को हम नीचे समझेंगे. 

इस्केमिक स्ट्रोक

हर्ट से ब्रेन में ब्लड पहुंचाने वाली वेसेल, हर्ट चैम्बर से पैदा होने वाला क्लाट, या कोलेस्ट्रॉल इक्ट्ठा होने के बाद होने वाले थ्रॉम्बस की वजह से ब्लड वेसेल के ब्लॉक होने से इस्केमिक Stroke होता है. इसे ब्रेन इनफॉरक्ट भी कहते है. स्ट्रोक के सारे मामलों में लगभग 87 परसेन्ट मामले इस्केमिक स्ट्रोक के होते हैं. 

हैमरेज़िक स्ट्रोक

वेसेल्स में रप्चर के कारण ब्रेन टिस्सू में या ब्रेन के इर्द गिर्द ब्लड के जमा होने पर हैमरेजिक स्ट्रोक होता है. इसे ब्रेन हैमरेज़ भी कहते हैं. स्ट्रोक के कुल मामलों में लगभग 13 परसेन्ट मामले ब्रेन हैमरेज के होते हैं.   

क्या स्ट्रोक हर्ट अटैक की तरह ही होता है?

हर्ट अटैक और स्ट्रोक दोनों अचानक सामने आने वाली हेल्थ इमरजेंसी है. दोनों स्थितियों में मरीज को तुरन्त मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत होती है. लेकिन दोनों बीमारियों में बड़ा फर्क है. इस फर्क को समझते हुए ही सही ट्रीटमेंट का चुनाव किया जा सकता है. 

हर्ट अटैक

हर्ट तक पर्याप्त मात्रा में ब्लड के न पहुंचने पर हर्ट अटैक के आने की संभावना बढ़ जाती है. इसमें ब्लड को हर्ट तक पहुंचने में बाधा का सामना करना पड़ता है जो हर्ट मसल्स को भी डैमेज़ करता है. ज्यादातर हर्ट अटैक कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज के कारण होते हैं. आर्टरीज़ में प्लेक के बनने से कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज होती है. प्लेक़ समय समय पर ब्लड फ्लो को रोकने का काम करता है जिससे कारण हर्ट को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.   

हर्ट अटैक के लक्षण 

  • सीने में दर्द या टाइटनेस 
  • बाहों और कन्धों में दर्द 
  • पीठ, गर्दन, और जबड़ों में दर्द 
  • सांस लेने में तकलीफ 
  • कमजोरी, नींद, बेहोशी 

स्ट्रोक

ब्लड के ब्रेन तक न पहुंच पाने से stroke होता है. ब्लाकेज़ या ब्लड वेसेल्स के क्षतिग्रस्त होना ब्रेन तक ब्लड न पहुंच पाने का मुख्य कारण होता है. दोनों ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी कारण होते है. ऑक्सीजन की कमी से ब्रेन सेल्स खत्म होने लगती हैं. इसलिए स्ट्रोक के मरीज को तुरन्त ट्रीटमेंट की जरूरत होती है. 

स्ट्रोक के लक्षण  

  • चक्कर आना, सन्तुलन खोना
  • कमजोरी, चेहरे और अंग का सुन्न पड़ जाना
  • तेज सरदर्द 
  • एक या दोनों आंखों में आसामान्य ब्लरनेस
  • बोलने या समझने में दिक्कत  

ट्रॉस्जिएंट इस्केमिक स्ट्रोक क्या है?

ट्रॉस्जिएंट इस्केमिक अटैक एक माइनर इस्केमिक इवेंट होता है जिसमें ब्रेन को मिलने वाली ब्लड सप्लाई कम हो जाती है. इसमें 24 घण्टों के भीतर रिकवरी हो जाती है. यह एक मेज़र इस्केमिक स्ट्रोक के लिए एक वार्निंग साइन है. इसे गम्भीरता से लेते हुए गहरी मेडिकल इनवेस्टिगेशन करवाया जाना है. 

स्ट्रोक के रिस्क फैक्टर क्या हैं ?

Stroke जेनेटिक कारणों से भी हो सकता है. बड़ी उम्र के पुरुष, पोस्टमेनोपाज़ल महिलाएं, औऱ ब्लैक लोग को स्ट्रोक आने का ज्यादा खतरा है. स्ट्रोक के दूसरे रिस्क फैक्टर्स में मोटापा, फिजिकल इनैक्टिविटी, टोबैको कन्जम्पशन, सिगरेट स्मोकिंग, डॉयबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, हाई ब्लड कॉलेस्ट्रॉल, और हर्ट वॉल्व या हर्ट रिदम में डिसआर्डर शामिल हैं. 

स्ट्रोक को कन्फर्म करने के लिए कौन से टेस्ट हैं? 

स्ट्रोक आने पर मरीज को तुरन्त अस्पताल पहुंचाना चाहिए. अस्पताल पहुंचाने के बाद सीटी स्कैन या ब्रेन की एमआरआई करवाने के बाद ही स्पष्ट तरीके से कहा जा सकता है कि मरीज ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित है या नहीं. 

इसकेमिक स्ट्रोक का इलाज कैसे किया जाता है?

जितनी जल्दी मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है उतना ही इस्केमिक स्ट्रोक के मैनेजमेंट में आसानी होती है. यही फैक्टर इस्केमिक मैनेजमेंट प्लान को डिसाइड करने में निर्णायक भूमिका निभाता है. अगर इस्केमिक स्ट्रोक आने के 4.5 घण्टे के भीतर रिकगनाइज कर लिया जाता है तो इसका इलाज सरटेन इनजेक्टेबल ड्रग्स से किया जाता है. ये इनजेक्टेबल ड्रग्स क्लॉट को डिसाल्व करने का काम करती हैं. अगर क्लॉट बड़ा है और इनजेक्टेबल ड्रग्स से डिसाल्व नहीं होता तो उसे 6 घण्टों के भीतर स्पेशल डिवाइसेज़ से नॉन इनवेसिव एंडोवासकुलर टेक्नीक का इस्तेमाल करके निकाला या एस्पाइरेट कर दिया जाता है.    

अस्पताल में भर्ती होने का टाइम बढ़ने पर मरीज को ओरल थिनिंग मेडीकेसन और लिपिड लोवरिंग एजेन्ट्स दिए जाते हैं. ब्लड प्रेसर कंट्रोल करना, ब्लड शुगर को मेनटेन रखना, और एडिक्सन्स को अवाइड करना स्ट्रोक से बचाव का सबसे कारगर तरीका है. तेज रिकवरी के लिए बेहतर हॉलिस्टिक न्यूरो रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम काफी मददगार साबित होता है. हॉलिस्टिक न्यूरो रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम में फिजियोथेरेपी, अकूपेशनल थेरेपी, बैलेन्स ट्रेनिंग और स्पीच थेरेपी शामिल हैं    

सेकेण्डरी स्ट्रोक प्रिवेन्शन क्या है?

दूसरे stroke को आने से रोकने के लिए जिन मेज़र्स का इस्तेमाल किया जाता है उसे सेकेण्डरी स्ट्रोक प्रिवेन्शन कहते हैं. इन मेज़र्स में हेल्दी फैट फ्री डॉयट, फिजिकल एक्टिविटी जैसे वॉक और डिएडिक्शन शामिल हैं. दवाएं खासकर ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, ब्लड थिनर, और लिपिड लोवरिंग दवाओं का सेवन सेकेण्ड स्ट्रोक प्रिवेन्सन के लिए बहुत ज़रूरी है. 



Frequently Asked Questions-


स्ट्रोक क्यों आता है?

जब ऑक्सीजन की कमी से ब्रेन सेल्स डेड होने लगती है तब स्ट्रोक आता है. ऑक्सीजन की ये कमी ब्रेन में ब्लड सप्लाई की कमी से होती है जो आर्टिलरी ब्लॉकेज़ और ब्रेन में किसी हिस्से में ब्लीडिंग की वजह से होती है. ब्लड की कमी से ब्रेन सेल्स में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और ऑक्सीजन कमी से वो डेड होने लगती है. ये एक तरह हेल्थ इमरजेंसी होती है जिसमें तुरन्त मरीज को हास्पिटल पहुंचाया जाना चाहिए.

स्ट्रोक के क्या लक्षण हैं? 

स्ट्रोक आने पर पीडित को चक्कर आने लगते हैं. चलते समय वो अपना सन्तुलन खो देता है. कमजोरी आने लगती है. पीड़ित का चेहरा और शरीर के दूसरे हिस्से सुन्न पड़ जाते हैं और सुन्न पड़े हिस्से पर कुछ महसूस नहीं होता है. स्ट्रोक की स्थिति में बहुत तेज़ सिर में दर्द होने लगता है. पीड़ित की एक या दोनों आंखों में आसामान्य ब्लरनेस आ जाती है. इन सबके अलावा, स्ट्रोक आने पर पीड़ित को बोलने और समझने में भी दिक्कत होती है. ऐसी स्थिति में पीड़ित को जल्दी से जल्दी हॉस्पिटल में एडमिट कराया जाना चाहिए. 

स्ट्रोक आने पर क्या करना चाहिए? 

चक्कर आना, बैलेंस खोना, चेहरे और शरीर के दूसरे हिस्सों का सुन्न पडना, कमजोरी, तेज सर दर्द, आंखों में ब्लरनेस, बोलने और समझने में दिक्कत, ये सारे स्ट्रोक के सिम्पटम्स हैं. ऐसे सिम्पटम्स दिखने पर तुरन्त पीड़ित को हॉस्पिटल में एडमिट कराया जाना चाहिए. पीड़ित को जितनी जल्दी मेडिकल ट्रीटमेंट मिलना शुरू होगा उतना ही उसके लिए बेहतर होगा. 

स्ट्रोक कितने तरह के होते हैं?

इम्केमिक और हैमरेजिक, स्ट्रोक मुख्यत दो तरह के होते हैं. इस्केमिक स्ट्रोक में ब्रेन तक ब्लड सप्लाई करने वाली वेसेल ब्लॉक होने से ब्रेन सेल्स के डेड होने से आता है. हैमरेजिक स्ट्रोक ब्रेन तक ब्लड सप्लाई करने वाली वेसेल्स में रप्चर होने से ब्रेन टिस्सू और ब्रेन के इर्द गिर्द ब्लड के इकट्ठा होने से आता है. 



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